कौन है भगवन शिव ? भगवन शिव की उत्पति कैसे हुई ? भगवन शिव से पहले और बाद क्या था और हुआ ? शिव का रहस्य :
हिन्दू पौराणिक कथाओं में, भगवान शिव का जन्म अद्वितीय और अनंत सत्य की प्रतिष्ठा मानी जाती है जिसे साकार और निराकार रूप में पूजा जाता है। उनका जन्म किसी मानव मात्र के द्वारा नहीं हुआ था, बल्कि वह अनंत और अविनाशी ब्रह्मांड के अंतर्गत स्थित एक अद्वितीय शक्ति हैं।
एक प्रमुख पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव की पत्नी का नाम पार्वती (पर्वती) था। उनके जन्म का कोई आदि और अंत नहीं है, क्योंकि वह अविनाशी और सर्वशक्तिमान हैं। वह ब्रह्मा, विष्णु, और शिव - त्रिमूर्ति के रूप में मानी जाती हैं जो सृष्टि, स्थिति, और संहार के कार्यों का पालन करते हैं।
शिव का जन्म किसी समय स्थिति के स्तर पर नहीं हुआ, वह सदैव थे, हैं, और रहेंगे। उनका अस्तित्व आध्यात्मिक और दार्शनिक विचारधारा में एक अद्वितीय और अनंत सत्य का प्रतीक है।
शिव (Shiva) हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवता है जिसे त्रिमूर्ति का हिस्सा माना जाता है। वह वैष्णववादी परंपराओं में भी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। शिव भगवान त्रिदेवों की एक तिनका है, जिनमें ब्रह्मा (सृष्टि), विष्णु (पालन) और महेश (संहार) शामिल हैं।
महत्व:
सृष्टि, स्थिति, और संहार का भगवान: शिव ब्रह्मा के सृष्टि, विष्णु के पालन और अपने संहार के रूप में व्यक्त होते हैं। वह संसार की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का प्रतीक हैं।
आध्यात्मिकता और तांत्रिक शक्ति:
शिव ध्यान, तपस्या, और आत्मा की प्राप्ति के देवता हैं। उनका ध्यान और पूजा आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करने का संकेत करता है।
नेत्रग्रंथि (आत्मा का दृष्टिगति केंद्र):
शिव का तीसरा नेत्र (त्रिनेत्र) सृष्टि, स्थिति, और संहार की विशाल दृष्टिगति का प्रतीक है, जिसे वह अपने पूजनीयों पर डालते हैं।
आदियोगी: वह आदियोगी हैं, जिसका अर्थ है वह आत्मा का अद्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने वाले हैं।
रूप:
नीलकंठ (नीला गला): शिव को "नीलकंठ" कहा जाता है, क्योंकि उनका गला नीला है, जिसका कारण समुद्र मंथन के दौरान पी लिया गया विश क्षीर का प्रभाव है।
अशेषशिव (नगराज):
शिव का एक रूप है "अशेषशिव" जिसमें वह सभी जीवों का संरक्षक माने जाते हैं।
पूजा और उपासना:
शिव की पूजा और उपासना हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। उनकी पूजा में जल, बेलपत्र, धतूरा, शिवलिंग, और बिल्व पत्र का प्रयोग किया जाता है। वह महामृत्युंजय मंत्र और शिव तांडव स्तोत्र के रूप में जाने जाते हैं जिनका पाठ किया जाता है।
इस प्रकार, शिव हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखने वाले एक प्रमुख देवता हैं, जो सृष्टि, स्थिति, और संहार की शक्ति का प्रतीक हैं और उनकी पूजा और उपासना साधकों के द्वारा की जाती है।
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हिन्दू पौराणिक कथाओं में, भगवान शिव को ब्रह्मांड की रचना करने का आदिकारी माना जाता है। उन्होंने सृष्टि, स्थिति, और संहार के कार्य करने का दायित्व ग्रहण किया है। उनके तांडव नृत्य से ब्रह्मांड की रचना और उसका संक्षय प्रतिस्थापित किया जाता है। शिव के तांडव नृत्य का एक अर्थ है कि उनका नृत्य जगत की उत्पत्ति, संस्थान, और विनाश की प्रक्रिया को प्रकट करता है।
हिन्दू पौराणिक कथाओं में, भगवान शिव के बाद भगवान विष्णु आते हैं। उन्हें संसार की सृष्टि, स्थिति और संहार का जिम्मा दिया गया है। विष्णु जगत की पालन-पोषण करने वाले देवता हैं और उन्हें स्थिति के रक्षक के रूप में पूजा जाता है। वह जीवों की संरक्षा करते हैं, संसार की रचना में सहायता करते हैं और अवतार लेकर जगत को रक्षा प्रदान करते हैं। विष्णु के अवतारों में राम, कृष्ण, पारशुराम, नृसिंह, वराह, वामन, बुद्ध, और कल्कि शामिल हैं।
इस प्रकार, हिन्दू धर्म में भगवान शिव के बाद भगवान विष्णु की उपस्थिति को महत्वपूर्ण माना जाता है। विष्णु का उद्दीपना वेदों में भी किया गया है और उन्हें सर्वोत्तम पुरुष और परमात्मा के रूप में पूजा जाता है।
हिन्दू पौराणिक कथाओं में एक प्रमुख कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के नाभि से भगवान ब्रह्मा की उत्पति हुई थी। इस कथा के अनुसार, जब सृष्टि का कार्य आरंभ हुआ, तो भगवान विष्णु नींद में सोते हुए थे। उनके नाभि में से एक कमल का फूल उत्पन्न हुआ, जिसमें से ब्रह्मा जी की उत्पति हुई। ब्रह्मा जी ब्रह्मांड के सृष्टिकर्ता के रूप में जाने जाते हैं और उन्हें प्रारंभ करने का जिम्मा सौंपा गया है। इसलिए उन्हें प्रजापति और चतुर्मुख भी कहा जाता है।
शिव का जन्म किसी समय स्थिति के स्तर पर नहीं हुआ, वह सदैव थे, हैं, और रहेंगे। उनका अस्तित्व आध्यात्मिक और दार्शनिक विचारधारा में एक अद्वितीय और अनंत सत्य का प्रतीक है। इस प्रकार, शिव हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखने वाले एक प्रमुख देवता हैं, जो सृष्टि, स्थिति, और संहार की शक्ति का प्रतीक हैं और उनकी पूजा और उपासना साधकों के द्वारा की जाती है।
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